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शौरीपुर में आनंद छाया, धरा हो गई ज्यों चंदन।।4।। बचपन से ही प्रभु आपने, अणुव्रत सा आचरण किया। बाल क्रियायें देख देखकर, यादव कुल में हर्ष हुआ।।5।।
नारायण श्री कृष्ण देव ने, प्रभु का नाता जोड़ दिया। राजुल से परिणय करने को, जूनागढ़ रथ मोड़ दिया।6।। ___ जीवों की सुन करुण पुकारें, प्रभु के उर वैराग्य हुआ। पशु बंधन को मुक्त किया कंगन तोड़ा निज भान हुआ।।7।। राजुल ने तब देख लिया स्वामी ने रथ क्यों मोड़ लिया। मुझसे आतम प्रीत तोड़ मुक्ति से नाता जोड़ लिया।।8। धिक् धिक् है संसार यहाँ औ, विषयभोग को है धिक्कार। इंद्रिय सुख की ज्वाला में ही, धू धू कर जलता संसार।।9।।
जेग की नश्वरता का प्रभु ने, किया चिंतवन बारंबार।। वस्त्राभूषण त्याग दिये औ, दूर किये है सभी विकार।।10। मोह शत्रु को नाश किया औ, पहुँच गये स्वामी गिरनार। भवसागर के आप किनारे, भवि जीवों के हैं आधार।।11।।
इंद्रिय सुख के कारण मैंने, नाथ आज तक पूजा की। आत्म स्वरूप लखा नहीं मैंने, भव सागर की वृद्धि की।।12।।
माना आप नहीं पर कर्ता, आत्म तत्व के ज्ञाता हो। भक्तों को कुछ ना देते निज सम भगवान बनाते हो।।13।।
सर्वदर्शी हैं आप किंतु नहीं तुमको देख सके कोई। ज्ञात हो हम सब ही के नहीं जान सके तुमको कोई।।14।।
वंदनीय है स्वयं आप पर को नहीं वंदन करें मुनीश। ऐसे त्रिभुवन तीर्थनाथ को कर प्रणाम धरकर पद शीश।।15।।
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