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आश्विन शुक्ला एकम् को, प्रभु केवलज्ञान उपाया जी। ऊर्जयंत पर समवसरण में, दर्शन कर सुख पाया जी।।
ज्ञान कल्यशणक सार है, शिवनगरी का द्वार है।
देखो प्रभ के समवसरण में हो रही जय-जयकार है।।4।। ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लप्रतिपदायां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आषाढ़ सुदी सप्तम को स्वामी, वसु विध कर्म नशाया जी। श्री गिरनार उच्च पर्वत से, मोक्ष महा पद पाया जी।।
मोक्ष कल्याणक सार है, सर्व कर्म की हार है।
देखो श्री गिरनार गिरि पर देव करें जयकार हैं।।5।। ऊँ ह्रीं आषाढ़शुक्लसप्तम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अत्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य
ॐ ह्रीं अहँ श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय नपमो नमः।'
जयमाला
त्रिभंगी छंद त्रिभुवन के नायक, आतम ज्ञायक, प्रभु चितक में खो जाऊँ।
अघ्यों से वंदन, नायूँ बंधन, मोक्षपुरी में बस जाऊँ।।1।।
हम शीश नवाये, प्रभु गुणगाये, हे नेमीश्वर विपद हरो। शुभ आश लगाये, आनंद पाये, हमको निज पद माहिं धरो।।2।।
ज्ञानोदय छंद जय जय नेमिनाथ तीर्थंकर, बालब्रह्मचारी भगवान। हे तीर्थेश परम उपकारी, करुणासागर दया निधान।।3।। नृप समुद्र के सुत हो प्यारे, शिवा देवी माँ के नंदन।
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