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दोहा मंगल उत्तम शरण हैं, नेमिनाथ भगवान। भाव ‘पूर्ण' प्रभु भक्ति से, होता दुख अवसान।।16।। ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता श्री नेमि जिनेश्वर, दया अधीश्वर, भव-भव का संताप हरो। नित पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण' हरो।।
॥ इत्याशीर्वादः॥
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