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धरती पे ना चले अधर में ही गमन किया। प्रभु भव्य के उद्धार को विहार है किया। प्रभु आपके सर्वांग से जो देशना खिरी। गणधर कृपा हुई हमें जिनवाणी हैं मिली||5|| आतम स्वरूप शुद्ध है निश्चय स्वयप से। वसु कर्म मल मलीन है व्यवहार रूप से।। प्रभु आपने ही वस्तु तत्त्व ज्ञान कराया। प्रभु आपने ही मोक्षये पंथ बताया ॥6॥ प्रभु सर्वं कर्म नाश मुक्तिधाम पा लिया। इंद्र ने भी हर्ष से उत्सव मना लिया। अग्नि देव ने संस्कार रचाया।
भक्ति से भस्म को तभी मस्तक पे लगाया ॥ 7 ॥ प्रभु नील कमल चिह्नित है चरण आपके। मैं कर्म मल को धो सकूँ तब दर्श को पाके
नमिनाथ तीर्थनाथ का मैं वंदन करूँ । शीघ्र मोक्ष को वरूँ मैं बंध ना करूँ ॥8॥
ऊँ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता
श्री नमिनाथ जिन स्वामी, हो जगनामी, भव-भव का संताप हरो । पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण' करो।
निज
॥ इत्याशीर्वादः ॥
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