________________
दीपक शिखा से तम मिटेगा, भ्रम रहा मेरा प्रभो। तमहारिणी वो ज्ञान छैनी, दूरतम करती विभो। हे नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये । सब कष्ट बाधायें मिटा भव-सिंधु पार उतारिये।।6।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु आपके ही ज्ञान घट में, ध्यान धूप सुगंध हैं। मम पास धूप, सुगंध बिन है, गंध आप अनूप हैं।। हे नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये । सब कष्ट बाधायें मिटा भव-सिंधु पार उतारिये।।7।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
चिर काल से इंद्रिय सुखों के, फल रहा मैं चाहता। प्रभु दर्श जो मैंने किया नित, आत्म सुख फल चाहता।। हे नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये । सब कष्ट बाधायें मिटा भव- सिंधु पार उतारिये ॥8॥ ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
निज आत्म वैभव का अतिशय, नाथ बतला दीजिये ।
मम अघ्ज्ञ को स्वीकार लो प्रभु, ज्ञानधार बहाइये।। नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये । सब कष्ट बाधायें मिटा भव-सिंधु पार उतारिये॥9॥ ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
155