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ताप मिट पाया नहीं।
स्पर्शित किया चंदन बहुत पर, गंगाम्बु मुक्ताहार शीतल, काम कुछ आया नहीं।
हे नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये । सब कष्ट बाधायें मिटा भव-सिंधु पार उतारिये।।2।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
नश्वर सुखों की कामना में, शिवभवन ना पा सका। पर भाव में अटका रुला हूँ, आत्म पद ना पा सका।।
हे नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये । सब कष्ट बाधायें मिटा भव- सिंधु पार उतारिये ॥3॥
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
यह चाह विषयों की मिटा दो, पुष्प अर्पण है प्रभो। दुष्कर्म का नेता यही ह, काम को नाशो प्रभो ।। हे नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये । सब कष्ट बाधायें मिटा भव-सिंधु पार उतारिये॥4॥
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
चिरकाल से जड़ वस्तुओं में, स्वाद आया है प्रभो।
निज ज्ञान रस का स्वाद अब तक, जान ना पाया प्रभो ।।
हे नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये ।
सब कष्ट बाधायें मिटा भव-सिंधु पार उतारिये।।5।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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