________________
श्री मुनिसुव्रतनाथ जिन पूजन
स्थापना ज्ञानोदय छंद
हे मुनिसुव्रत मेरे भगवन्, सिद्धालय के वासी हो। आह्वान करूँ आओ जिनवर, मम हृदय कम विश्वासी हो। भावों के पीले पुष्पों से, बुला रहा हूँ, आ आजो। शत्रु भी शांत हुए हैं, शीघ्र हृदय में बस जाओ || 1 || मैं हूँ भक्त आपका सच्चा, आप मेरे सच्चे भगवान। मेरी दुनिया छोटी सी है, रखना मेरा भगवन् हृदयांगन में करूँ प्रतीक्षा, बोलो ना कब आओगे।
कर्म
ध्यान।।
आश है विश्वास पूर्ण है, नाथ मेरे गृह आओगे॥2॥
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्र !अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण हरिगीतिका छंद
जग में जनम लेकर अनंतों, बार मैं मरता रहा।
जब आपका वैभव लखा तो, देखता ही मैं रहा ।।
हे नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये । सब कष्ट बाधायें मिटा भव-सिंधु पार उतारिये।।1।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
153