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जय आनंद निधान जिनेशा, हरो अमंगल दोष अशेषा। बाल ब्रह्मचारी जिनराई, मुक्तिरमा से प्रीत लगाई।।5।।
कुमार वय में दीक्षा धारी, द्रव्य भाव हिंसा परिहारी। मोह मल्ल को नाश किया है, निज आतम को जान लिया है।।6।।
प्रभु सोलह कारण आराधे, तीर्थ प्रवर्तन सब सुख भासे। मास पूर्व ही योग निरोधा, योग रहित हो शिव को साधा।।7।। ___ गणधर हुए अट्ठाईस सारे, उन्हें त्रियोग से नमन हमारे। मैं संयम की पाऊँ नैया, शिवपथ के हो आप खिवैया।।8।।
स्वानुभूति तरणी गंभीरा, आये मोक्षपुरी के तीरा। जिनवर काटे कर्म जजरा, चऊ गतियों की नाशी पीरा।।9। मैं भी ऐसा जीवन पाऊँ, निकट कापके शीश झुकाऊँ। जपूँ सदैव प्रभु दिन रैना, जाग मेरी पुण्य सुसेना।।10॥ महानजिन श्रीमल्लिनाथा, नष्ट किया वसुविधि का खाता। जिनवर मुक्तिपुरी के वासी, उसी पंथ का मैं प्रत्याशी।।11।।
प्रभुवर आत्म भवन में आये, अनंत सुख के उपवन पाये। मल्लिनाथ पद शीश नवाये, प्रभु समान निज पद हम पाये।।12।।
दोहा कलश चिह्न लख चरण में, इंद्र करें जयकार।
संबल मल्लीनाथ दो, हो जाऊँ भव पार।।13। ऊँ ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता हे मल्लिनाथ जिनेश्वर, मेरे ईश्वर, भव-भव का संताप हरो। नित पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण’ करो।।
॥ इत्याशीर्वादः॥
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