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पंचकल्याणक
सखी छंद प्रभु आनत दिवि से आये, और राजगृहे में आये। कृष्णा श्रावण द्वितीया दिन, माँ पद्मा उर आये जिन।।
छप्पन कुमारियाँ आई, अंतःपुर बजे बधाई।
माँ स्वप्न देख हर्षायें, नृपराज सुमित्र सुनाये।।1।। ऊँ ह्रीं श्रावणकृष्णद्वितीयायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अत्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वैशाख वदी तिथि आई, बारस जन्मे जिनराई। अभिषेक किया मेरु पर, बस अर्ध निमिष में जाकर।।
जो जन्म मरण से डरते, वे प्रभु की पूजा करते।
मैं जामन मरण मिटाऊँ, जन्मोत्सव आज मनाऊँ।2।। ऊँ ह्रीं वैशाखकृष्णद्वादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अत्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वैशाख वदी दशमी थी, प्रभु जाति स्मृति हुई थी। जब केशलोंच कर लीना, सुर क्षीरोदधि में दीना।।
तेला कर दीक्षा धारी, थे संग सहस मुनिराई।
इंद्राणी चाौक बनाया, दीक्षाकल्याण मनाया।।3।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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