________________
ध्यानाग्नि से अष्ट कर्म को दग्ध किया। एकम सुदी वैशाख मुक्ति वरण किया।।
श्री सम्मेदाचल से जिनवर सिद्ध हुए।
कूट ज्ञानधर गिरिवर की जय बोल रहे।।5।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्लप्रतिपदायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अत्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
दोहा कुंथुनाथ भगवान है, करुणा के अवतार। इस असार संसर में प्रभु भक्ती ही सार।।1।
पद्धरि छंद जय कुंथुनाथ हे जगन्नाथ, करुणा के सागर प्राणिनाथ। जय कुमति निकंदन कुंथुनाथ, हे कल्मषी भंजन कुंथुनाथ।।2।।
जय सुख वारिधि हे कुंथुनाथ, गुणवंत हितंकर कुंथुनाथ। जय शिवरमणी के प्राणनाथ, छठवें चक्रेश्वर कुंथुनाथ।।3।।
जय श्रीमति नंदन कुंथुनाथ, पितु सूर्यसेन सुत कुंथुनाथ। पैंतिस गणधर थे आप नाथ, थे मुख्य स्वयंभू मुनीनाथ।।4।।
हैं कई हजार शिष्यों के नाथ, श्रोता नर नारी इंद्रनाथ। अष्टादश दोष विमुक्त नाथ, प्रभु नंत चतुष्टय युक्त नाथ।।5। ___ मोहारिजयी श्रीकुंथुनाथ, शत इंद्र नमाते शीश नाथ। चिन्मय चिंतामणि आप नाथ, कुन्थादि जीव के दया नाथ।।6।।
जब कौरव वंशी कुंथुनाथ, अज चिह्न चरण है आप नाथ। मैं तब चरणों में नमूं माथ, मुक्ति तक देना साथ नाथ।।7।।
138