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पंचकल्याणक
आडिल्ल छंद श्रीमती को सोलह सपने दिखलाये। श्रावण वदी दशमी को गर्भ में आये।।
तीनों पद के धारी प्रभुवर धन्य हैं।
नगर हस्तिनापुर भी लगता रम्य है।।1।। ऊँ ह्रीं श्रावणकृष्णदशम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सूर्यसेन राजा के घर में जन्म लिया। एकम सुदी वैशाख दिवस पावन किया।।
कामदेव तेरहवें रूप मनहारी।
पांडु शिला अभिषेक हुआ अतिशयकारी॥2॥ ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्लप्रतिपदायां जन्ममंगलमंडिताय श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जाति स्मरण से प्रभु आप संयम धरा। सब संसार असार जाना तप निखरा।। विजय पालकि चढ़े चले निर्जन वन में।
तिलक तरु के नीचे प्रभुवर तप करने।।3।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्लप्रतिपदायां तपोमंगलमंडिताय श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चैत्र शुक्ला तृतीया घाति नष्ट किया।
तृतीया घाति नष्ट किया। समवसरण को रच कुबेर हर्षित हुआ। शिवपथ बतलाया प्रभो ने ज्ञान दिया।
दिव्यध्वनि से प्रभु विश्व कल्याण किया॥4॥ ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्लातृतीयायां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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