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प्रभु मोक्षनगर में करें वास, जिनपदवी की बस लगी आस। जिनराज दर्श की अभिलाष, वसु कर्म दुष्ट का करूँ नाश।।8।। __ अब हो जाऊँ स्वाधीन नाथ, इसलिए नवाऊँ आज माथ। प्रभु सादर सविनय नमन आज, जयमाला अर्पण मुक्ति काज॥9॥
दोहा नंत चतुष्टय लीन है, चित् स्वभाव अविकार।
मुझ पर भी कर दो कृपा, करूँ भवोदधि पार।।10॥ ऊँ ह्री श्री कुंथुनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता
श्री कुंथु जिनेश्वर, हे करुणेश्वर, भव-भव का संताप हरो। निज पूज रचाऊँ, ऊयान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण' करो।।
।।इत्याशीर्वादः।।
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