________________
कभी अतीत के विकल्प करते, कभी नआगत के संकल्प। भव आताप बढ़ाते रहते, बीत गया यों काल अनंत।।
सिद्धक्षेत्र की शांति पाने, भवाताप हरने आये।
कुंथुनाथ जिनराज शरण में, श्रद्धा चंदन ले आये।।2।। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाषनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
जगत उपाधि पाने हेतु, आधि व्याधि से ग्रसित रहे। कुगुरु कुदेव कुधर्म की सेवा, मिथ्यादर्शन गृहीत धरें।। __ इसीलिए अविनाशी बनने, निज वैभव पाने आये।
कुंथुनाथ जिनराज शरण में, अखंड अक्षत ले आये।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
इंद्रिय मन के विषय मनोहर, मिष्ट जहर जैसे लगते। आत्म शील के नाशक हैं सब, दुख उत्पन्न सदा करते।।
चिन्मय रूप मनोहर पाने, आप्त काम होने आये।
कुंथुनाथ जिनशरण में, पुष्प अचेतन ले आये।।4। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
तन के कारण किञ्चित् किंतु, मन के हित आहार किया। तन की भूख तनिक से मिटती, क्षुधा व्याधि को बढ़ा दिया।।
क्षुधा रोग उपसर्ग मिटा दो, ज्ञान सुधा पाने आये।
कुंथुनाथ जिनराज शरण में, ले नैवेद्य चले आये।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाषनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
135