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श्री कुंथुनाथ जिन पूजन
स्थापना
अडिल्ल छन्द कुंथुनाथ जिनराज दया के सिंधु हैं। नाथ दिवाकर आप सुधाकर इंदु हैं।।
प्राणीमात्र की रक्षा करते नाथ हैं। इसीलिए शत इंद्र झकाते माथ हैं।।1।। सिद्धालय में जिनवर आप समा गये। निज देहालय में परमेश्वर आ गये।। प्रभो आपका भक्ति से आह्वान करूँ।
आकर फिर ना जाना ये ही अरज करूँ।।2।। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्र !अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्र !अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण
ज्ञानोदय छंद प्रासुक जल अर्पण करने से, शुद्ध बनेंगे सोचा था। किंतु अशुभ भावों को हमने, नहीं मिटाना चाहा था।। जनम मरण से व्याकुल होकर, वचनामृत पाने आये।
कुंथुनाथ जिनराज शरण में, प्रासक जल पूजन लाये।। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाषनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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