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काल अनादि भवाताप से, दुःख अनंत सहा करता। निज चौतन्य सदन में प्रभुवर, क्रोधानल धू-धू जलता।।
सारे दर को छोड़ प्रभु जी, आज आपके दर आया।
शांतिनाथ जिनवर चरणों में, शीतलता पाने आया।॥2॥ ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
हीरा मोती माणिक आदि, अक्षत लेकर आया हूँ। राग-द्वेष बंधन मिट जाये, यही भावना लाया हूँ।। सारे दर को छोड़ प्रभु जी, आज आपके दर आया।
शांतिनाथ जिन चरणांबुज में, अक्षय पद पाने आया।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
निजानंद पुष्पित बगियाँ में, प्रभु विहार नित करते हो। अपनी ही फुलवारी में निज, ब्रह्म रूप रस पीते हो।। सारे दर को छोड़ प्रभु जी, आज आपके दर आया।
शांतिनाथ प्रभु के चरणों में, कामजयी होने आया।।4।। ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रद्धा रस से भरा हुआ, नैवेद्य समर्पित करता हाँ निजानुभव से तृप्त प्रभु की, वीतरागता वरता हूँ।। सारे दर को छोड़ प्रभु जी, आज आपके दर आया।
शांतिनाथ जिनवर चरणों में, शुचिमय चरु पाने आया।।5॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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