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श्री शांतिनाथ जिन पूजन
स्थापना
नरेन्द्र छन्द
उध्र्व लोक के अग्रभाग पर, रहते हो त्रिभुवननामी।
सात राजू दूरी पर स्वामी, दूर रहूँ मैं भवगामी।। प्रभु आप और बीच हमारे, आज बहुत ही दूरी है।
आप वीतरागी मैं रागी, श्रद्धा बंधन डोरी है। वचनों में नहीं शक्ति प्रभु जी कैसे आज बुलाऊँ मैं।
भाव भक्ति मेरी सुन लेना, शांति जिनेश पुकारूँ मैं।। ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण
तर्ज-पाँचों मेरु असि........
शुद्धातम का शुद्ध नीर श्रद्धाझारी में भर लाया।
प्रभु दर्श करते ही मिथ्यातम का अंतिम दिन आया।।
सारे दर को छोड़ प्रभु जी, आज आपके दर आया।
शांतिनाथ जिनवर चरणों मे, स्वभाव जल पाने आया।1॥ ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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