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अति विरक्त होकरजिन मेरे, आप निरखते निज निधियाँ। रत्नदीप से करूँ आरती, मेरी भी खोलो अखियाँ।। सारे दर को छोड़ प्रभु जी, आज आपके दर आया। शांतिनाथ प्रभु के चरणों में, परम ज्योति पाने आया।।6।। ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु आपके सिद्धमहल में, ज्ञान धूप घट जलते हैं।
अतः कर्म के कीट पतंगे, दूर-दूर ही रहते हैं। सारे दर को छोड़ प्रभु जी, आज आपके दर आया। शांतिनाथ प्रभु के चरणों में, शुद्धि धूप पाने आया ।। 7 ।। ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
मम श्रद्धा मंडप में आओ, मुक्ति का उत्सव कर दो। फल लाया हूँ प्रभु चढ़ाने, एक नजर मुझ पर कर दो।। सारे दर को छोड़ प्रभु जी, आज आपके दर आया। शांतिनाथ प्रभु के चरणों में, मुक्तिरमा वरने आया ॥ ४॥ ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
बिन श्रद्धा के नाथ हजारों, मैंने अर्घ्य चढ़ाये हैं। दिखा दिखाकर इस दुनिया को,धर्मी भी कहलाये हैं। सारे दर को छोड़ प्रभु जी, आज आपके दर आया।
शांतिनाथ प्रभु के चरणों में, मुक्तिरमा वरने आया॥9॥ ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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