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श्री धर्मनाथ जिन पूजन
स्थापना
नरेन्द्र छन्द धर्मनाथ जिनवर चरणों में, अपना शीश झुकाता।
सूरज से भी तेज उजाला,नाथ आपमें पाता।। कृपा दृष्टि मिल जाये तो मैं, बिना पंख उड़ सकता। मध्यलोक से लोक शिखर तक, क्षण भर में जा सकता।।
यदि आप मम गृह आये तो, कर्मो से लड़ पाऊँ।
शाश्वत मुझमें ठहर गये तो, तुम जैसा बन जाऊँ।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्र !अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्र !अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण
तर्ज-पाँचों मेरु असि... शुद्ध ज्ञान का जल भर लाया, धार देत त्रय शान्ति कराय।
परम जिनराय, जय-जय नाथ परम सुखदाय।। आत्म ध्यान का करूँ उपाय, धर्मनाथ जिनवर गुणगाय।
परम जिनराय, जय-जय नाथ परम सुखदाय।1।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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