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जाप्य
ऊँ ह्रीं अर्हं श्रीविमलनाथजिनेन्दाय नमो नमः ।
जयमाला
चौपाई
विमलनाथ जिन भवभय हारी, ज्ञान मूर्ति शिशु सम अविकारी। परम दिगंबर मुद्रा धारी, शरणागत को मंगलकारी ॥1॥
तेरहवें तीर्थंकर स्वामी, दयामूर्ति समता अभिरामी तेरह विध चारित्र बताया, दिव्यध्वनि में ज्ञान कराया || 2 || पाँच महाव्रत पाँच समितियाँ, तीन गुप्ति पाले दिन रतियाँ। निश्चय पंच महाव्रत धारी, पाता शिवपद अतिशय कारी ॥ 3 ॥ हिंसा 'झूठ परिग्रह सारे, कुशील चोरी पाप निवारे । पूर्ण रूप से इनको त्यागे, सम्भ्यग्दर्शन युत अनुरागे।।4। मिथ्यादर्शन जब तक रहता, शून्य सभी हो चारित चर्या। मिथ्यातम है पहले जाता, फिर संयम है क्रम से आता।॥5॥
ईर्या भाषैषणा समिती, निक्षेपण आदान सुनीती। प्रतिष्ठापन ये पाँच समिती, मुनी जनों को इनसे प्रीती ॥6॥ बिन विवेक है क्रिया अधूरी, मोक्षमहल से रहती दूरी । जब तक है मिथ्यात्व वासना, समिति का है नाम लेश ना || 7 || वचन गुप्ति मनो गुप्ति पाले, काय गुप्ति धारे ठीाव टाले। मन वच तन जो संयम धारे, योगों की दुष्प्रवृत्ति निवारे ॥ 8॥ तीर्थ प्रवर्तक आप कहाये, आतम हित चारित्र बताये। गुरू कृपा से जागे शक्ती, प्रभु चरणों की कर लूँ भक्ती ॥9॥ दुर्भावों को दूर भगाऊँ, सोयी आतम शक्ती जगाऊँ। नाथ आपका पथ अनुगामी, बन जाऊँ मैं शिवपथ गामी।।10।।
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