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प्रभु जन्म पुनः नहीं धारे, नृप कृतवर्मा सुत प्यारे। जिन पांडु शिला पर लाये, इंद्रों ने न्हवन कराये।। सुद माघ चौथ थी प्यारी, सुरपति शचि भी हरषाई।
शचि जन्मोत्सव मनाये, एक भव में मुक्ति पाये ।2।। ॐ हीं माघशुक्लचतु,यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीविमलनाथजिनेन्दाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जब मेघ नाश को देखा, सब छोड़ दिया जग लेखा। लौकांतिक विभु गुण गाया, तप दुद्धर विभु मन भाया।।
पालकी देवदत्ता थी, उद्यान सहेतुक पहुँची।।
तप कल्याणक सुखदाई, जय विमलनाथ जिनराई ॥3॥ ॐ हींमाघशुक्लचर्तुत्र्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीविमलनाथजिनेन्दाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
त्रय वर्ष रहे छद्मस्था, प्रभु मौन रहे निज स्वस्था। वदि माघ सु षष्ठी आई, प्रभु केवलज्ञान उपाई।। पहले पाटल तरु नीचे, फिर अधर गगन में पहुंचे।
जय विमलनाथ क्षेमंकर, जय त्रयोदशम् तीर्थंकर।।4।। ॐ हीं माघकृष्णषष्ठयां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्दाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ कृष्ण अष्टमी आई, आषाढ़ मास सुखदाई। गिरि कुट सुवीर शिखर से, शिवनार वरी गिरिवर से।
प्रभु आठों करम नशाये, और निजानंद पद पाये।
हम मोक्ष कल्याण मनाये, कब पास आपके आये।।5।। ॐ हीं आषाढकृष्णाअष्टम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीविमलनाथजिनेन्दाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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