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श्री विमलनाथ जिन पूजन
स्थापना
चौपाई
विमलनाथ प्रभु दर पर आया, श्री चरणों में शीश झुकाया। जब से भगवन् दर्शन पाया, और न कोई मन को भाया ।। 1 ॥
काल अनंता व्यर्थ बिताया, आतम को पहचान न पाया। पर को जान, मान ही आया, मन मंदिर में नहीं बिठाया ॥ 2 ॥
क्षमा कीजिए हे सुखधामी, हृदय वेदी पर आओ स्वामी। भक्ति भाव का चौक पुराया, श्रद्धा थाल सजाकर लाया ॥3॥ ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
ज्ञानोदय छंद
प्रमातम आनंद सरोवर, भावों से जल अपिर्तत है।
रत्नत्रय की मुक्ता चुगता, मानस हंसा प्रमुदित है। सम्यग्दर्शन कलश कनकमय, ज्ञान नीर को ले आऊँ ।
जन्म मरण के नाश हेतु श्री, विमलप्रभु के गुण गाऊँ ॥1॥
ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्दाय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
हे
प्रभुवर तुम शांत सौम्य हो, शीतल चंदन ले आया। क्रोधानल से दूर रहूँ मैं, अतः शरण में हूँ आया ।।
तप्त हो रहा भवाताप से, समता रस का पान करूँ।
अनंत मय चंदन पाने, आत्म तत्त्व का ध्यान धरूं ॥2॥
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्दाय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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