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तांडव नृत्य किया अति अद्भुत, जिन बालक को सौप दिया।।4।।
अष्ट वर्ष की आयु में ही, प्रभु ने अणुव्रत धार लिया। ब्रह्मचर्य आजीवन रखकर, पंच मुष्टि कचलोंच किया।।
दीक्षा लेकर चार ज्ञन युत, मौन रहे एक वर्ष प्रमाण। क्षपक श्रेणी चढ़ मोह नाश कर, पदपाया अरहंत महान।।।5।।
देश-देश में विहार करके, मुक्ति का उपदेश दिया। धर्म-शुक्ल शुभ ध्यान के द्वारा, मोक्ष मिले संदेश दिया।। श्रावक मुनिव्रत को दर्शाया, दीक्षा विधि भी बतला दी। छयासठ गणधर थे जिनवर के, मुख्यार्या वरसेना थी।।6।। गर्भ जन्म तप ज्ञान मोक्ष, कल्याण हुए चंपापुर में। धन्य-धन्य चंपापुर नगरी, धन्य धरा इस भूतल में।। हे जिनवर में शिवपद पाऊँ, यही भावना है स्वामी। "पूर्ण' करो मेरी अभिलाषा, वासुपूज्य त्रिभुवननामी।।7।।
दोहा प्रभु कृपा से प्राप्त हो, परम आत्म कल्याण।
जयमाला चरणन धरूँ, हे जिन पूज्य महान।।8।। ऊँ हीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता श्री वासुपूज्य जी, लाया अरजी, भव-भव का संताप हरो। निज पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण’ करो।
॥ इत्याशीर्वादः॥
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