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भादों शुक्ल चतुर्दशी आयी, उडु विशाख शिवलक्ष्मी पाई। छह सौ एक साथ मुनिराई, कर्म नष्ट कर मुक्ति पाई।।
चंपापुर निर्वाण धाम जहाँ, हुए पाँच कल्याण।
जय-जय वासुपूज्य भगवान,जय-जय तीर्थंकर भगवान ।।5।। ॐ हीं भाद्रशुक्लचतुर्दश्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य
ऊँ हीं अहँ श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय नमो नमः।
जयमाला
ज्ञानोदय छंद इंद्र नरेंद सुरों से पूजित, वासुपूज्य मेरे भगवान। विश्व विजेता विश्व विभूति, जिनवर महिमा महा महान।।
महिष चिह्न युत पद कमलों को, जो मनमंदिर में धारे। पूज्य पदों की परम कृपा से, भक्त स्वयं निज को तारे।।1।।
तीन ज्ञान के धारी स्वामी, जन्म समय से थे गुणवान। वसुदेव पितु माँ विजया ने दिया सभी को अनुपम दान ।। प्रभु आपका जन्म जानकर, आनंदित सुर नर सारे। ऐरावत गज लेकर आये, लाए वाद्य यंत्र सारे।।2।। तीन प्रदक्षिणा दे नगरी की, इंद्राणी जिनगुह आई।
निद्रालीन किया माता को, मन में हर्षित हो आई।। प्रथम किये जिन शिशु के दर्शन, सूरज जैसा अतिशायी। सौंप दिया कर में प्रभु जी को, इंद्र अचंभित था भारी।।3।। सहस्र नयन से निरख-निरख कर, मेरु सुदर्शन न्हवन किया।
इंद्राणी ने वस्त्राभूषण, पहनाकर श्रृंगार किया। चंपापुर में आकर सबने, मात पिता को नमन किया।
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