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महोत्सव मनाया गया। मानव समुदाय ने भी जिनेन्द्र भगवान की पूजा कर निर्वाण लाडू (नैवेद्य) चढा कर पावन दिव को समारोहित किया।
इसी दिवस शुभ-बेला में अंतिम तिर्थंकर भगवान महावीर के प्रथम प्रमुख गणधर गौतम स्वामी को केवल लक्ष्मी की प्राप्ति हुई, जिसके उल्लास में ज्ञान के प्रतीक निर्मल प्रकाश से समस्त लोक को प्रकाशित करती हुई दीप मालिकायें प्रज्वलित कर भव्य-दिव्य उत्सव मनाया गया।
यह अवसर्पिणी के चतुर्थ काल का समापन तथा पंचम काल का सन्धि काल था, जब कार्तिक शुक्ल एकम से नवीन संवत्सर का शुभारम्भ कर यह श्री वीर निर्वाण संवत के नाम से प्रचलित हुआ। विश्व में ज्ञात, प्रचलित- अप्रचलित शताधिक संवत्सरों में यह सर्वाधिक प्राचीन है। भारतीय संस्कृति के आस्थावान अनुयायी इस देन व्यावसायिक संस्थानों में हिसाब बहियों का शुभ मुहुर्त कर्ते हैं, इसी दिन से नवीन लेखा वर्ष का परम्परानुसार शुभारम्भ माना जाता
है।
भारत सरकार ने वर्ष 1989 में एक विधेयक पारित कर लेखा वर्ष की गणना ईसवी सन की 1 अप्रैल से प्रारम्भ कर 31 मार्च तक की जाने की अनिवार्यता लागू कर हमारी धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक मान्याओं से परे अपनाने को सभी को बाध्य एवं विवश कर दिया है। यद्यपि शासकीय नियम के परिवर्तन को 19 वर्ष हो चुके हैं किंतु अब भी अधिकांश जन लेखा बहियाँ दीपावली के देन ही खरीद कर लाते हैं। दीपावली के मंगल दिवस पर विधिविधान अनुसार श्री महावीर स्वामी की पूजा एवं अन्य मांगलिक क्रियायें सम्पन्न कर शुभ बेला में स्वस्तिक मांड कर रख देते हैं, तथा इन्हें लगभग पाँच माह उपरांत 1 अप्रैल से प्रारंभ करते है ।
अनेक लोग इन परिस्थितिवश दुविधाग्रस्त हैं के बहियाँ खरीद कर दीपावली पर पूर्वानुसार लाना ही उचित है अथव एक अप्रैल या उसके पूर्ववर्ती देवस को । इस सन्दर्भ मे जान लेना परम आवश्यक है कि दीपोत्सव पर्व को मनाने का कारण श्री वीर प्रभु का निर्वाण तथा गणधर श्री गौतम स्वामी को कैवल्य लक्ष्मी की प्राप्ति होना है जबकि पूर्व काल में लेखावर्ष का शुभारंभ तथा संवत्सरी भी इससे सम्बद्ध होने से इसी अवसर पर नवीन बहियाँ खरीद कर लाना एवम उनका शुभ मुहूर्त आदि प्रासंगिक एवं युक्तियुक्त था। अब चूँकि लेखा वर्ष का शुभारम्भ 1 अप्रैल से होता है अतः 31 मार्च अथवा 1-2 दिन पूर्व शुभ-दिवस, चौघडिया एवं मुहूर्त में बहियाँ ला कर 31 मार्च को भी विधि अनुसार पूजन कर नवीन बहियों का शुभ मुहूर्त किया जा सकता है। जो लोग दीपावली के दिन बहियाँ ला कर रख देते हैं, उन्हे असुविधा ना हो तो वे परम्परानुसार कर्ते रहें। यह सभी सुविधाओं पर निर्भर है। वैसे भी बही मुहूर्त तथा लेखा शुभारम्भ दोनो अलग अलग क्रियायें हैं। बही मुहूर्त दीपावली को कर उनका शुभारम्भ 1 अप्रैल से किया जा सकता
है।
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