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महावीर के साथ ऐसा नहीं था। महावीर ने नया धर्म खोजने या सिखाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। तथ्य की दृष्टि से यह भी कहा जाता है कि अपने ज्ञान की खोज के लिए बुद्ध जैनों की साधु चर्या में भी प्रविष्ट हुए थे।
2. बौद्ध साहित्य में निगन्थ नातपुत्त (महावीर) और उनकी महानता के उल्लेख पाये जाते हैं। मज्झिम निकाय (PT.S. II, p. 214) में लिखा है कि निर्ग्रन्थ साधुओं ने बुद्ध को बताया कि उनके स्वामी नातपुत्त सर्वज्ञ थे और उनके अनन्त ज्ञान के द्वारा उनने (महावीर ने बताया कि पूर्व जन्मों में उन्होंने (साधुओं ने) क्या पाप किये थे। समयुत्त निकाय (P.T.S. IV, p.398) इस मान्यता के बारे में बताता है कि प्रसिद्ध नातपुत्त बता सकते थे कि उनका अनुयायी मृत्यु के बाद कहाँ जन्म लेगा और पूछने पर यह भी बता सकते थे कि कोई व्यक्ति पुनः कहाँ उत्पन्न हुआ। अंगुत्तर निकाय इस मान्यता पर भी संकेत करता है कि निगन्थ नातपुत्त सब कुछ जान सकता था, सब अनुभूत कर सकता था, उसका ज्ञान सीमारहित (अनन्त) था और हर समय जब हम चलते, सोते या अपने सांसारिक कार्यों को कर रहे होते हैं, तब भी वह सर्वज्ञ होता है। रॉकहिल अपनी (पुस्तक) “लाइफ ऑफ बुद्धा" (पृष्ठ 259) में राजा अजातशत्रु के लिए महावीर के द्वारा कहे गये इस कथन को पुष्ट करते हैं। समागाम सुत्त में महावीर की मृत्यु (निर्वाण) के बाद पावा में उनके अनुयायियों के मतभेद का संकेत है- यह तथ्य बौद्धों से सम्बन्धित था, जो प्रत्यक्ष रूप से महावीर के उत्तरजीवी थे। “बुद्ध वृत्तान्त, उनके सैद्धान्तिक कार्य और अन्य पुस्तकों में यह देखा जा सकता है कि यह प्रतिद्वन्द्वी (महावीर) खतरनाक और प्रभावशाली व्यक्ति था और बुद्ध के समय में भी उसके उपदेश बहुत ज्यादा फैल चुके थे (व्हूलर- द जैनास्)।" जैकोबी कहते हैं कि महावीर अपने ही तरह का महान् व्यक्ति और