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पिछली शताब्दी (19वीं) के अन्त में इस स्तर के मशहूर पूर्वी विद्वान् डॉ. हरमन जैकोबी ने प्रवेश किया और बौद्धधर्म सम्बन्धित उत्पत्ति के सिद्धान्त को बहुत अधिक सफलतापूर्वक खण्डित किया। पहले तो उन्हें तीव्र विरोध झेलना पड़ा, लेकिन अन्ततः उनकी खोज को सबने स्वीकार किया। जैकोबी ने किसी भी भ्रम की छाया के बिना सिद्ध किया कि बौद्ध शास्त्रों के निगन्थ नातपुत्त कोई अन्य नहीं, बल्कि जैनों के अन्तिम और चौबीसवें तीर्थङ्कर वर्द्धमान महावीर ही हैं, महावीर न केवल गौतम बुद्ध से प्रौढ़ समकालीन थे, अपितु बौद्धधर्म के शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी भी थे और यह कि महावीर के समय में और उससे भी पहले जैनधर्म कुछ समय के लिए मजबूती से स्थापित धर्म रहा है और यह भी कि महावीर ने केवल उसको (धर्म को) उन्नत किया और साधुओं के नियमों को पुनर्गठित किया। इस प्रकरण में जैकोबी और अन्य विद्वानों के द्वारा सङ्कलित प्रामाणिक साक्ष्यों को निम्न प्रकार से संक्षिप्त कर सकते हैं
1. जैन ग्रन्थों में मगध के राजाओं और उस समय के कुछ धार्मिक शिक्षकों के नाम उल्लिखित हैं, जो महावीर के समकालीन होने के साथ ही बुद्ध के भी समकालीन थे। बौद्ध ग्रन्थों में निगन्थ नातपुत्त के नाम से महावीर उल्लिखित हैं और उनकी मृत्युस्थली भी 'पावा' नाम से दर्शायी है। अतः इसमें कोई सन्देह नहीं है कि दोनों समकालीन और स्वतंत्र थे। बौद्ध प्रायः जैनों को प्रतिद्वन्द्वी सम्प्रदाय की तरह इंगित करते थे, लेकिन यह सम्प्रदाय नवीन उत्पन्न है, ऐसा संकेत भी नहीं दिया। इसके विपरीत जिस तरह से वे उसके बारे में बोलते थे, उससे लगता है कि यह निर्ग्रन्थों का सम्प्रदाय बुद्ध के समय में भी स्थिर मान्यता वाला रहा था। अथवा अन्य शब्दों में कथञ्चित् लगता है कि जैनधर्म बौद्धधर्म से बहुत अधिक प्राचीन है। और भी, बुद्ध ने ज्ञान की खोज के लिए कई प्रयोग किये थे, पर