SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आण्विक सिद्धान्त वैशेषिक का आवश्यक भाग बनाता है और न्याय के द्वारा स्वीकार किया गया है, ये दोनों ब्राह्मणिक दर्शन हैं, जो दिव्य अथवा धार्मिक लोगों के बजाय लौकिक विद्वानों (पंडितों) के द्वारा उत्पन्न हुए हैं। भिन्नतावादियों में से, यह जैनों और आजीवकों के द्वारा भी गोद लिया गया है। हम जैनों को प्रथम स्थान पर रखते हैं, क्योंकि वे पदार्थ के बारे में अत्यन्त प्रारम्भिक विचारों से अपनी व्यवस्था का हल निकालते हुए प्रतीत होते हैं।" यह बात जैनों के कर्मसिद्धान्त के बारे में, जो कि उनके स्वयं के आण्विक सिद्धान्त पर आधारित है, उनकी सर्वचेतनावादी मान्यता और नायकपूजा के बारे में भी समानरूप से सत्य है। प्रो. जी. सत्यनारायण मूर्ति ने 1916 में लिखा कि “जैनधर्म भारतीय चिन्तन के प्राचीन विद्यालयों के देशी उत्पाद के रूप में प्रतीत होता है। जो कुछ भी यूरोपीय ख्याति के प्रारम्भिक सावंतों ने कहा है, उसके विपरीत यह ध्यान देने योग्य है कि जैनधर्म अपने धर्म की सम्पूर्ण महिमा और अपने साहित्य की प्रचुरता के साथ, लौकिक और धार्मिक दोनों रूप से अत्यधिक प्राचीनकाल से सौंपा जा रहा है। जैनधर्म के पास उनका स्वयं का इतिहास है। एक इतिहास, जिसके अधिकांश अज्ञात हिस्सों पर भारत और विदेश दोनों में कई विद्वानों के धैर्यपूर्ण शोधों की वजह से प्रायः प्रत्येक वर्ष ताजा प्रकाश डाला जाता है। जैनधर्म के इतिहास के लिए अब कई स्रोत हैं और अपना स्वयं का इतिहास है। अर्थात् एशिआटिक समाज के प्रकाशित विवरण और एशिआटिक शोध- डेविस, नॉक्स, केप्टन माहोनी, हॉगसन, डॉ. बुचानन, प्रो. विलसन, डी ला मैने, डॉ. जैकोबी और व्हूलर और अन्य जैन इतिहासकारों का मेजबान।" गुस्टॉव ऑपर्ट के अनुसार जैनधर्म-प्रचारक देशी जनसंख्या के 46
SR No.009248
Book TitleJain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherDharmoday Sahitya Prakashan
Publication Year2011
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy