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अमल अखंडित अक्षय धोय, पूजौं सिद्ध क्षेत्र सुख होय । लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान ।।
अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान
ऊँ ह्रीं भरतक्षेत्र श्री भरत क्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्रेभ्यः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।3।
पुष्प सुगंध मधुप झंकार, पूजौं सिद्ध क्षेत्र मंझार । लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान
अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान ।।
ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र श्री भरत क्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्रेभ्यः कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
वर नैवेद्य मिष्ट अधिकाय, पूजौं सिद्ध क्षेत्र समवाय ।। हौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान
अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।। हौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान ।।
ऊँ ह्रीं भरतक्षेत्र श्री भरत क्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्रेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
दीप रतनमय तेज सुहाय, पूजौं सिद्ध क्षेत्र समवाय। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान ।।
अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान
ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र श्री भरतक्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्रेभ्यः मोहान्धकारविनाशनाय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 61
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