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श्री निर्वाण क्षेत्र बड़ी पूजा (श्री निर्वाण लड्डू पूजा)
दोहा वंदौं श्री भगवान् को, भाव भगति सिर नाय। पूजा श्री निर्वाण की, सिद्धक्षेत्र सुखदाय।।1। भरत क्षेत्र के विषै, सिद्धक्षेत्र जो जान। तिनि को मैं वंदन करौं, भव भव होइ सहाय।।2।
अथ स्थापना (आडिल्ल छन्द) परम महा उत्कृष्ट मोक्ष मंगल सही, आदि अनादि संसार भानि मुक्ति लही।। तिनिके चरन अरु क्षेत्र जजों शिवदायही। आह्वानन विधि ठानि बार त्रय गायहीं।1। ऊँ ह्रीं भरत क्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं भरत क्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं भरत क्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्र! अत्र मम सन्निहितौ भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
अष्टक (पंचमेरु पूजा की चाल में) शीतल उज्ज्वल निर्मल नीर, पूजौं सिद्धक्षेत्र गम्भीर।
लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान।। अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।।
लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान।। ॐ ह्रीं श्री भरत क्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्रभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
चंदन घिसौं कपूर मिलाय, भव अताप तुरति मिट जाय।
लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान।। अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।।
लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान।। ऊँ ह्रीं भरतक्षेत्र श्रीभरतक्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्रेभ्यः भवआतापविनाशनाय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
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