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धूप सुगंध लहै दश अंग, पूजौं सिद्ध क्षेत्र सरवंग। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान
ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र श्री भरतक्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्रेभ्यः अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 7।
फल प्रासुक उत्तम अतिसार, सिद्ध क्षेत्र वांछित दातार । लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान
अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान ||
ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र श्री भरत क्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्रेभ्यः मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। 8 ।
अर्घ करौं निज माफिक शक्ति, पूजौं सिद्ध क्षेत्र करि भक्ति। लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान ।।
अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।। हौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान ।।
ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र श्री भरतक्षेत्र सम्बन्धी निर्वाण क्षेत्रेभ्यः अनध्य पद प्राप्तये अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 9।
तीरथ सिद्ध क्षेत्र के सबै, वांछा मेरी पूरो अ लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान ।।
अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।।
लहौं निर्वाण पूजौं मन वच तन धरि ध्यान ।।
ॐ ह्रीं भरतक्षेत्र श्री भरत क्षेत्र सम्बन्धी निर्वाणक्षेत्रेभ्यः महाघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।10।
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