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जनम जेठवदी तिथि द्वादशी, सकल मंगल लोकविषै लशी। हरि जजे गिरिराज समाजतैं, हम जजैं इत आतम काजतैं ।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा- द्वादश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 21
भव शरीर विनस्वर भाइयो, असित जेठ दुवादशि गाइयो । सकल इंद्र जजैं तित आइकैं, हम जजैं इत मंगल गाइदैं ||
ऊँ ह्रीं ज्येष्ठ कृष्णा-द्वादश्यां तपोमंगल-मंडिताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 3।
असित चैत अमावसको सही, परम केवलज्ञान जग्यो कही । ही समोसृत धर्म धुरंधरो, हम समर्चत विघ्न सबै हरो ।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-अमावस्यायां ज्ञानमंगल-मंडिताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 4।
असित चैत अमावस गाइयौ, अघत घाति हने शिव पाइयो । गिरि समेद जजें हरि आयकैं, हम जजें पद प्रीति लागइदैं | |
ॐ ह्रीं चैत्र कृष्णा - अमावस्यायां मोक्षमंगल-मंडिताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1 ।
जयमाला (दोहा)
गुण वरन म जितम, खं विहाय कर-मान तथा मेदिनी पदनि-करि, कीनों चहत प्रमान ॥ 1 ॥ जय अनन्त-रवि भव्यमन - जलज - वृन्द विहँसाय । सुमतिकोक-तिय थोक-सुख, वृद्ध कियो जिनराय ॥2॥
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