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जय पुष्पदन्त जिनवर जगीश, शत इन्द्र नमत नित आत्मशीश । जय शीतल वच शीतल जिनन्द, भवताप नशावन जगत चन्द ॥५॥ जय जय श्रेयांस जिन अति उदार, भवि कंठ मांहि मुक्ता सुहार । जय वासुपूज्य वासव खगेश, तुम स्तुति करि नमिहें हमेश ॥६॥
जय विमल जिनेश्वर विमलदेव, मल रहित विराजत करहुं सेव । जय जिन अनन्त के गुण अनन्त, कथनी कथ गणधर लहे न अंत ॥७॥
जय धर्म धुरन्धर धर्म धीर, जय धर्म चक्र शुचि ल्याय वीर । जय शान्ति जिनेश्वर शान्त भाव, भव वन भटकत शुभ मग लखाव ॥८॥
जय कुंथु कुंथुवा जीव पाल, सेवक पर रक्षा करि कृपाल । जय अरहनाथ अरि कर्म शैल, तपवज्रखंड लहि मुक्ति गैल ॥९॥
जय मल्लि जिनेश्वर कर्म आठ, मल डारे पायो मुक्ति ठाठ । जय मुनिसुव्रत सुव्रत धरन्त, तुम सुव्रत व्रत पालन महन्त ॥१०॥ जय नमि नमत सुर वृन्द पाय, पद पंकज निरखत शीश नाय । जय नेमि जिनेन्द्र दयानिधान, फैलायो जग में तत्वज्ञान ॥११॥ जय पारस जिन आलस निवारि, उपसर्ग रुद्र कृत जीत धारि । जय महावीर महा धीरधार, भवकूप थकी जगनै निकार ॥१२॥ जय वर्ग आठ सुन्दर अपार, तिन भेद लखत बुध करत सार । जय पांच पूज्य परमेष्ठि सार, सुमिरत बरसे आनन्द धार ॥१३ ॥
जय दर्शन ज्ञान चारित्र तीन, ये रत्नमहा उज्ज्वल प्रवीन । जय चार प्रकार सुदेव सार, तिनके गृह जिन मन्दिर अपार ॥१४ ॥
वे पूजें वसुविधि द्रव्य ल्याय, मैं इत जजि तुम पदशीश नाय । जो मुनिवर धारत अवधि चार, तिन पूजै भवि भवसिन्धु पार ॥१५॥
जो आठ ऋद्धि मुनिवर धरन्त, ते मौपे करुणाकरिमहन्त । चौबीस देवि जिन भक्ति लीन, वन्दन ताको सु परोक्ष कीन ॥१६॥
जे ह्रीं तीन त्रैकोण मांहि, तिन नमत सदा आनन्द पाहिं।। जय जय जय श्री अरहंत बिम्ब, तिन पद पूजूं मैं खोई डिंब ॥१७ ॥
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