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तोमर छन्द
दस आठ दोष निरवारि, छियालीस महागुणधारि । वसु द्रव्य अनूप मिला, तिन चन जर्जी सुखदाय ॥ ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव विनाशन-समर्थाय अष्टादशदोष-रहिताय छियालीस-महागुणयुक्ताय अरहन्त परमेष्ठिने अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
सोरठा - दश दिश दश दिग्पाल, दिशा नाम सो नामवर ।
तिन गृह श्री जिन-आल, पूजों वन्दौं मैं सदा ॥
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव विनाशन-समर्थेभ्यः दशदिग्पालेभवनेषुजिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषि मंडल शुभ यन्त्र के, देवी देव चितारि ।
अर्घ सहित प्रभु पूजहूं, दुख दारिद्र निवारि ॥
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव विनाशन-समथेभ्यः ऋषिमंडल-सम्बन्धि-देवीदेवसवितेभ्यः जिनेन्द्रभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा - चौबीसों जिन चरन नमि, गणधर नाऊं भाल ।
शारद पद पंकज नमूं, गाऊं शुभ 'जयमाल ॥
जय आदीश्वर जिन आदि देव, शत इन्द्र जजैं मैं करहुं सेव । जय अजित जिनेश्वर जे अजीत, जे जीत भये भव तें अतीत ॥ १ ॥
जय सम्भव जिन भवकूप मांहि, डूबत राखहु तुम शर्ण अहि । जय अभिनन्दन आनन्द देत, ज्यों कमलों पर रवि करत हेत ॥ २ ॥ जय सुमति सुमतिदाता जिनन्द, जै कुमति तिमिर नाशनदिनन्द ।
जय पद्मालंकृत पद्मदेव दिन रयन करहुं तव चरन सेव ॥३॥ जय श्रीसुपाईव भवपाश नाश, भवि जीवन कूं दियो मुक्तिवास । जय चन्द जिनेश दया निधान, गुण सागर नागर सुख प्रमान ॥४ ॥
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