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अर्द्ध चन्द्र समान फेनी मोदकादिक ले घने । घृत पक्व मिश्रित रससु पूरे लख क्षुधा डायनि हने ॥ जहाँ सुभग ऋषिमण्डल विराजै पूजि मन वच तन सदा।
तिस मनोवांछित मिलत सब सुख स्वप्न में दुःख नहिं कदा ॥ ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशाय-समर्थाय यन्त्र सम्बन्धी परम देवाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥
मणि दीप ज्योति जगाय सुन्दर वा कपूर अनूपकं । हाटक सुथाली माहिं धरिके वारि जिनपद भूपकं ॥ जहाँ सुभग ऋषिमण्डल विराजै पूजि मन वच तन सदा ।
तिस मनोवांछित मिलत सब सुख स्वप्न में दुःख नहिं कदा ॥ ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशाय-समर्थाय यन्त्र सम्बन्धी परम देवाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥
चन्दन सु कृष्णागरुकपूर मंगाय अग्नि जराइये ।
सो धूप-धूम अकाश लागी मनहुं कर्म उड़ाइये। जहाँ सुभग ऋषिमण्डल विराजै पूजि मन वच तन सदा ।
तिस मनोवांछित मिलत सब सुख स्वप्न में दुःख नहिं कदा ॥ ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशाय-समर्थाय यन्त्र सम्बन्धी परम देवाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥७॥
दाडिम सु श्रीफल आम्र कमरख और केला लाइये ।
मोक्ष फलके पायवे की आश धरि करि आइये ॥ जहाँ सुभग ऋषिमण्डल विराजै पूजि मन वच तन सदा ।
तिस मनोवांछित मिलत सब सुख स्वप्न में दुःख नहिं कदा ॥ ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशाय-समर्थाय यन्त्र सम्बन्धी परम देवाय फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥
जल फलादिक द्रव्य लेकर अर्घ्य सुन्दर कर लिया।
संसार रोग निवार भगवन् वारि तुम पद में दिया ॥ जहाँ सुभग ऋषिमण्डल विराजै पूजि मन वच तन सदा ।
तिस मनोवांछित मिलत सब सुख स्वप्न में द:ख नहिं कदा ॥ ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशाय-समर्थाय यन्त्र सम्बन्धी परम देवाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ॥९॥
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