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बेसरी छन्द उत्तम छिमा जहाँ मन होई, अन्तर-बाहिर शत्रु न कोई। उत्तम मार्दव विनय प्रकासै, नाना भेद ज्ञान सब भासै ॥ उत्तम आर्जव कपट मिटावै, दुरगति त्यागि सुगति उपजावै । उत्तम सत्य-वचन मुख बोलै, सो प्रानी संसार न डोलै ॥ उत्तम शौच लोभ परिहारी, सन्तोषी गुण-रतन-भंडारी । उत्तम संयम पालै ज्ञाता, नर-भव सफल करै ले साता ॥ उत्तम तप निरवांछित पालै, सो नर करम-शत्रु को टालै । उत्तम त्याग करै जो कोई, भोगभूमि-सुर-शिवसुख होई ।। उत्तम आकिंचन व्रत धारै, परम-समाधि-दशा विस्तारै । उत्तम ब्रह्मचर्य मन लावै, नर-सुर सहित मुकति-फल पावै ॥
दोहा
करै करम की निरजरा, भव-पींजरा विनाश ।
अजर-अमर पद को लहै, द्यानत सुख की राशि ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमा मार्दव आर्जव सत्य शौच संयम तपस्त्यागाकिञ्चन्य ब्रह्मचर्य दशलक्षणधर्माय पूर्णाऱ्या
निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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