________________
परिग्रह चौबीस भेद, त्याग करें मुनिराज जी । तिसना भाव उछेद, घटती जान घटाइए ॥ उत्तम आकिंचन गुण जानो, परिग्रह-चिंता दुख ही मानो । फाँस तनक-सी तन में सालै, चाह लँगोटी की दुख भालै ॥ भान समता सुख कभी नर, बिना मुनि मुद्रा धरैं । धनि नगन पर तन-नगन ठाड़े, सुर असुर पायनि परें ॥ घर - माहिं तिसना जो घटावै, रुचि नहीं संसार सौं । बहु धन बुरा हू भला कहिये, लीन पर उपकार सौं ॥ ॐ ह्रीं उत्तमाकिञ्चन्यधर्माङ्गाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
शील- बाड़ नौ राख, ब्रह्म-भाव अन्तर लखो । करि दोनों अभिलाख, करहु सफल नर- भव-सदा ॥ उत्तम ब्रह्मचर्य मन आनौ, माता-बहिन-सुता पहिचानो । सहैं बान-वरषा बहु सूरे, टिकै न नैन-वान लखि कूरे ॥ कूरे तिया के अशुचि तन में, काम-रोगी रति करें ।
बहु मृतक सड़हिं मसान माँहीं, काग ज्यों चोंचें भरें ॥ संसार में विष-बेल नारी, तजि गये जोगीश्वरा । द्यानत धरम दश पैंडि चढ़िकै, शिव-महल में पग धरा ॥ ॐ ह्रीं उत्तमब्रह्मचर्यधर्माङ्गाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
समुच्चय जयमाला
दोहा - दश लच्छन वन्दौं सदा, मन-वांछित फल दाय । कहों आरती भारती, हम - पर होहु सहाय ॥
713