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नहिं लहै लछमी अधिक छल करि, करम-बन्ध-विशेषता ।
भय त्यागि दूध बिलाव पीवै, आपदा नहिं देखता ॥ ॐ ह्रीं उत्तमार्जवधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
कठिन वचन मति बोल, पर-निन्दा अरु झूठ तज।
साँच जवाहर खोल, सतवादी जग में सुखी ॥ उत्तम सत्य वरत पालीजै, पर विश्वासघात नहिं कीजै । साँचे-झूठे मानुष देखो, आपन पूत स्वपास न पेखो ॥ पेखो तिहायत पुरुष साँचे को दरब सब दीजिये। मुनिराज-श्रावक की प्रतिष्ठा साँच गुण लख लीजिये । ऊँचे सिंहासन बैठि वसु नृप, धरम का भूपति भया ।
वच झूठ सेती नरक पहुँचा, सुरग में नारद गया ॥ ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
धरि हिरदै सन्तोष, करहु तपस्या देह सौं।
शौच सदा निरदोष, धरम बड़ो संसार में ॥ उत्तम शौच सर्व जग जाना, लोभ पाप को बाप बखाना।
आशा-पास महा दुखदानी, सुख पावै सन्तोषी प्रानी ॥ प्रानी सदा शुचि शील जप-तप, ज्ञान-ध्यान प्रभाव तैं । नित गंग जमुन समुद्र न्हाये, अशुचि-दोष स्वभाव तें ॥ ऊपर अमल मल भर्यो भीतर, कौन विधि घट शुचि कहै। बहु देह मैली सुगुन - थैली, शौच - गुन साधु लहै । ॐ ह्रीं उत्तमशौचधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
काय छहों प्रतिपाल, पंचेन्द्री मन वश करो। संयम-रतन सँभाल, विषय-चोर बहु फिरत हैं। उत्तम संजम गहु मन मेरे, भव-भव के भाजै अघ तेरे ।
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