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प्रभु ने प्रथम आहार राजा, कूल के घर में लिया। वैशाख सुदि दशमी तिथी, केवलरमा परिणय किया।।
श्रावण वदी एकम तिथि, गौतम मुनी गणधर बनें।
तव दिव्यध्वनि प्रभु की खिरी, हम पूजते हर्षित तुम्हें।4। ऊँ ह्रीं वैशखशुक्ला-दशम्यां श्रीमहावीरजिन-केवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
कार्तिक अमावस पुण्य तिथि, प्रत्यूष बेला में प्रभो। ___ पावापुरी उद्यान सरवर, बीच में तिष्ठे विभो।। निर्वाण-लक्ष्मी वरणकर, लोकाग्र में जाके बसे।
हम पूजते वसु अध्य ले, तुम पास में आके बसें।5। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णा-अमावस्यां श्रीमहावीरजिन-निर्वाणकल्याणकाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
जयमाला (दोहा)
चिन्मरति चिंतामणि, चिंतित फलदातार। तुम गुणमणिमाला कहूँ, सुखसंपतिसाकार।1। (बाल-श्रीपति जिनवर करुणा....)
जय-जय श्री सन्मति रत्नाकर! महावीर! वीर! अतिवीर! प्रभो। जय-जय गुणसागर वर्धमान! जय त्रिशलानंदन! धीर प्रभो!।
जय नाथवंश अवतंस नाथ! जय काश्यपगोत्र शिखामणि हो। जय-जय सिद्धार्थतनुज फिर भी, तुम त्रिभुवन के चूड़ामणि हो।2। जिस वन में ध्यान धरा तुमने, उस वन की शोभा अति न्यारी। सब ऋतु के फूल खिलें सुन्दर, सब फूल रहीं क्यारी क्यारी।।
जहँ शीतल मंद पवन चलती, जल भरे सरोवर लहरायें। सब जात विरोधी जन्तूगण, आपस में मिलकर हरषायें।3।
चहुँ ओर सुभिक्ष सुखद शांती, दुर्भिक्ष रोग का नाम नहीं। सब ऋतु के फल फल रहे मधुर, सब जन-मन हर्ष अपार सही।।
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