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________________ उपेंद्रवजा छंद त्रैलोक्य शांतीकर शांतिधारा, श्री सन्मती के पदकंज धारा । निजस्वांत शांतीहित शांतिधारा, करते मिले हैं भवदधि किनारा ॥10॥ शांतये शांतिधारा सुरकल्पतरु वर पुष्प लाऊँ, पुष्पांजलि कर निज सौख्य पाऊँ। संपूर्ण व्याधी भय को भगाऊँ, शोकादि हर के सब सिद्धि पाऊँ।।11।। दिव्यपुष्पांजलिः पंचकल्याणक (गीता छंद) सिद्धार्थ नृप कुण्डलपुरी में, राज्य संचालन करे।। त्रिशला महारानी प्रिया सह, पुण्य संपादन करें। आषाढ़शुक्ला छठ तिथि, प्रभु गर्भ-मंगल सुर करें। हम पूजते वसु अध्यले, हर विघ्न सब मंगल भरे। 1। ॐ ह्रीं आषाढ़ शुक्ला - षष्ट्यां श्रीमहावीरजिन-गर्भकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। सितचैत्र तेरस के प्रभु, अवतीर्ण भूतल पर हुए। घंटादि बाजे बज उठे, सुरपति मुकुट भी झुक गये। सुरशैल पर प्रभु जन्म-उत्सव, हेतु सुरगण चल पड़े। हम पूजते वसु अघ्य ले, निजकर्म धूली झड़ पड़े।2। ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्ला-त्रयोदश्यां श्रीमहावीरजिन- जन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। मगसिर वदी दशमी तिथि, भवभोग से नि:स्पृह हुए। लौकांतिकादी आनकर, संस्तुति करें प्रमुदित हुए || सुरपति प्रभु की निष्क्रमण, विधि में महा उत्सव करें। हम पूजते वसु अध्यले, संसार सागर से तरें। 3 । ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णा-दशम्यां श्रीमहावीरजिन-दीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 666
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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