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श्रीमहावीर जिन-पूजा (अहिंसा-स्थल, नई दिल्ली)
(रचयित्री- श्रीप्रभा) आपके दर्शन कर प्रभु मिटे उर-अज्ञान। निरख अनुपम आपकी छवि, हृदय हर्ष महान।। भव-उदधि के तीर्थ हैं जगपूज्य विश्व-ललाम।
हे अहिंसा स्थल-विराजित महावीर प्रणाम।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
है धन्य जीवन आज जो दर्शन मिले प्रभु वीर के। जग-जन तुम्हारी शरण पाकर तरें भव के तीर से।। हे प्रभु स्वयं को जान लूँ मैं अति दुःखी भव पीर से।
मैं हूँ अपावन बनूँ पावन आज सम्यक् नीर से।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु आपका है रूप अनुपम नयन को शीतल करे। प्रभु आपसे पा प्रेरणा हम भाव उर निर्मल धरें।। मैं हूँ कषायों से घिरा तुम राग-द्वेष-विमुक्त हो।
चन्दन तुम्हें अर्पित करूँ जग-ताप से मैं तृप्त हो।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
तुम नाथ नित्य अमल अखंडित सिद्ध शुद्ध स्वरूप हो। शिवपद-विराजित वीर तुम निर्मल अरूप अनूप हो।। मैं युग-युगों से घूमता जग में दुःखो से हूँ दुखी।
अक्षत तुम्हे अर्पित करूँ पाऊँ परम पद हो सुखी।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
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