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वल्लाल नृपति चला धरा से जीवन को समाप्त किया। हा! हा कार मचा नगर में सौ में से इक न्यून रहा।। इसलिये इस ग्राम नगर का ऊन ग्राम का नाम रहा। आषाढ़ कृष्ण अष्टमी बुद्धवार को चेतन को इक स्वप्न हुआ।।
अतिशयकारी भव्य मनोहर महावीर प्रभु प्रगट हुए। खजुराहो के शैली मध्य मनोहर मंदिर चमकाये ।। जैन संस्कृति शैव संस्कृति से राजा ने महकाये । सर्वोदय वन तीर्थ ऊन सत्यं शिवं सुन्दर दर्शन । श्री स्वर्णभद्रादि मुनिवर चरण-कमल फणीश वन्दन ।।
ऊँ ह्रीं ॐ ह्रीं श्रीपावागिरि - सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्तेभ्यः स्वर्णभद्रादि- चतुर-मुनिश्वरेभ्यः एवं शान्ति
कुन्थु - अर- महावीरजिनेन्द्रेभ्यः अर्घ्यपद प्राप्तये जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा)
धन्य-धन्य पावागिरि चमके जग में नाम । दर्शन अर्चन वंदन भक्ति से पाते शिवराम ||
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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