SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 644
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो शरण तुम्हारी आते है, ये उनके पास न आती हैं।१८। तुमने सब बैर, विरोधों पर, समदर्शी बन जय पाई है। मैं भी ऐसी समता पाऊँ, यह मेरे हृदय समाई है।१९। अपने समान ही तुम सबका, जीवन विशाल कर देते हो। तुम हो तिखाल वाले बाबा, जग को निहाल कर देते हो।२०। तुम हो त्रिकालदर्शी तुमने, तीर्थंकर का पद पाया है। तुम हो महान् अतिशयधारी, तुम में आनंद समाया है।२१। चिन्मूरति आप अनंतगुणी, रागादि न तुमको छू पाये। इस पर भी हर शरणागत, मनमाने सुखसाधन पाये।२२। तुम रागद्वेष से दूर-दूर, इनसे न तुम्हारा नाता है। स्वयमेव वृक्ष के नीचे जग, शीतल छाया पा जाता है।२३। अपनी सुगंध क्या फूल कहीं, घर-घर आकर बिखराते हैं। सूरज की किरणों को छूकर, सुमन स्वयं खिल जाते हैं।२४। भौतिक पारसमणि तो केवल, लोहे को स्वर्ण बनाती है। हे पाश्व ! प्रभो तुमको छूकर, आत्मा कुंदन बन जाती है।२५। तुम सर्वशक्तिधारी हो, प्रभु ऐसा बल मैं भी पाऊँगा। यदि यह बल मुझको भी दे दो, फिर कुछ न माँगने आऊँगा।२६। कह रहा भक्ति के वशीभूत, हे दयासिन्धु ! स्वीकारो तुम। जैसे तुम जग से पार हुये, मुझको भी पार उतारो तुम।२७। जिसने भी शरण तुम्हारी ली, वह खाली न रह पाया है। अपनी-अपनी आशाओं का, सबने वाँछित-फल पाया है।२८। बहुमूल्य-सम्पदायें सारी, ध्यानेवालों ने पाई हैं। पारस के भक्तों पर निधियाँ, स्वयमेव सिमटकर आई हैं।२९। जो मन से पूजा करते हैं, पूजा उनको फल देती है। प्रभु-पूजा भक्त पुजारी के, सारे संकट हर लेती है।३०। जो पथ तुमने अपनाया है, वह सीधा शिव को जाता है। 644
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy