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________________ जो पुदगल के निमित्तकारण, वे राग-द्वेष तुम से हारे।५। तुम पर निर्जन-वन में बरसे, ओले-शोले पत्थर-पानी। आलोक तपस्या के आगे, चल सकी न शठ की मनमानी।६। यह सहन-शक्तिओं का बल है, जो तप के द्वारा आया था। जिसने स्वर्गों में देवों के, सिंहासन को कम्पाया था।७। अहि का स्वरूप धरकर तत्क्षण, धरणेन्द्र स्वर्ग से आया था। ध्यानस्थ आपके ऊपर प्रभु, फण-मंडप बनकर छाया था।८। उपसर्ग कमठ का नष्ट किया, मस्तक पर फण-मंडप रचकर। पद्मादेवी ने उठा लिया, तुमको सिर के सिंहासन पर।९। तप के प्रभाव से देवों ने, व्यन्तर की माया विनशाई। पर प्रभो आपकी मुद्रा में, तिलमात्र न आकुलता आई।१०। उपसर्गों का आतंक तुम्हें, हे प्रभु ! तिलभर न डिगा पाया। अपनी विडम्बना पर बैरी, असफल हो मन में पछताया।११। शठ कमठ बैर के वशीभूत, भौतिक बल पर बौराया था। अध्यात्म-आत्मबल का गौरव, वह मूरख समझ न पाया था।१२। दश-भव तक जिसने बैर किया, पीड़ायें देकर मनमानी। फिर हार मानकर चरणों में, झुक गया स्वयं वह अभिमानी।१३। यह बैर महादुःखदायी है, यह बैर न बैर मिटाता है। यह बैर निरंतर प्राणी को, भवसागर में भटकाता है।१४। जिनको भव-सुख की चाह नहीं, दुःख से न जरा भय खाते हैं। वे सर्व-सिद्धियों को पाकर, भवसागर से तिर जाते हैं।१५। जिसने भी शुद्ध मनोबल से, ये कठिन परीषह झेली हैं। सब ऋद्धि-सिद्धियाँ नत होकर, उनके चरणों पर खेली हैं।१६। जो निर्विकल्प चैतन्यरूप, शिव का स्वरूप तुमने पाया। ऐसा पवित्र-पद पाने को, मेरा अंतर-मन ललचाया।१७। कार्माण-वर्गणायें मिलकर, भव-वन में भ्रमण कराती हैं। 643
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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