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सब बन्ध खुले छिन मांहि लखो, अरि मित्र होंय गुरु सांच अखो। सब विघ्न-विनाशक सुखकर हैं, कलिकुन्ड-सुयंत्र नमूं वर हैं।6।
अतिसर संग्रहणी रोग नसें, बंझा नारी लह पुत्र हँसें। सब विघ्न-विनाशक सुखकर हैं, कलिकुन्ड-सुयंत्र नमूं वर हैं।7।
सब दूर अमंगल हेय जान, सुख-संपत दिन-दिन बढ़त मान। सब विघ्न-विनाशक सुखकर हैं, कलिकुन्ड-सुयंत्र नमूं वर हैं।8। इस यंत्र की जे पूजा करंत, सुर-नर सुख लह हों मुकति-कंत।
सब विघ्न-विनाशक सुखकर हैं, कलिकुन्ड-सुयंत्र नमूं वर हैं। ऊँ ह्रीं क्लीं ऐं अहँ कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्रपद्मावती-सेविताय अतुलबलवीर्य-पराक्रम
सर्वविघ्न-विनाशनाय महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य मंत्र ॐ ह्रीं क्लीं ऐं अहँ श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेवित ममेप्सितं कार्यं कुरु कुरु स्वाहा।
नागेंद्र प्रभु के चरण नमते मुकुट-प्रभा महा बढ़ी। बढ़ो पुण्य अपार सब दुखकार अघ-प्रकृति घटी।।
ध्याये श्री कलिकुण्ड-दण्डप्रचण्ड पारसनाथ जी। तिनकी सुनो जयमाल भविजन कहूँ नवा के माथ जी।1।
त्रोटक छंद विधि घाति हनो वर ज्ञान लहो, सब ही पदार्थ को भेद कहो। नित यंत्र नमूं कलिकुण्ड सार, सब विघ्न-विनाशन सुक्खकार।2। ___ कुमती वसु-मान विनाशत हैं, मुकति का मारग भाषत हैं। नित यंत्र नमूं कलिकुण्ड सार, सब विघ्न-विनाशन सुक्खकार।3।
दर्गति मारग का नाश करे, एकांत-मिथ्यात विवाद हरे। नित यंत्र नमूं कलिकुण्ड सार, सब विघ्न-विनाशन सुक्खकार।4। ___ निराकुल निर्मल शील धरे, निर्मेल मुक्त-लक्ष्मी को वरे। नित यंत्र नमूं कलिकुण्ड सार, सब विघ्न-विनाशन सुक्खकार।5।
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