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नहीं क्रोध मान छल लोभ पाप, अष्टादश दोष-विमुक्त आप। नित यंत्र नमूं कलिकुण्ड सार, सब विघ्न-विनाशन सुक्खकार।6।
हैं अजर अमर गुण के भंडार, सब विघ्न-विनाशक परम सार। नित यंत्र नमूं कलिकुण्ड सार, सब विघ्न-विनाशन सुक्खकार। 7।
नागेंद्र नरेन्द्र सुरेंद्र आय, नमिहें आनन्दित चित्त लाय। नित यंत्र नमूं कलिकुण्ड सार, सब विघ्न-विनाशन सुक्खकार।8।
दिनेंद्र मुनींद्र निशन्द्र आय पूजत नित मनमें हर्ष धार। नित यंत्र नमूं कलिकुण्ड सार, सब विघ्न-विनाशन सुक्खकार।9। घत्ता छन्द- सब पाप-निवारण, संकट-टारण, कलिकुण्ड प्रभु पारस परचंड
जग में यश पावै, संपति आवै, लहैं मुक्ति जो सुख अखण्ड।।
प्रतिदिन जो वन्दें, मन आन हों बलवन्त पाप सब दूर।। सबविघ्न विनाश लहैं सुख-संपति दुष्टकर्म होवें चकचूर।10।
श्री पारसस्वामी अन्तर्यामी, ध्यान लगायो वन मांही। चर कमठ जु आयो क्रोध बढ़ायो उपसर्ग जु कीनी अधिकाई।।
जिन मेरु समाना अचल महाना लख नागेंद्र ने पूज कियो। सुर फण-मंडप कीनो सुरबल हीनो है प्रभु को निज-शीश नयो।।11। सोरठा- पूजन ये सुखकारा, जे भवि करि हैं प्रीतिधर।
विधि बलवंत अपार, हन-हन शिव सुख को लहैं।।
जाप 1. ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ कलिकुण्ड श्रीपार्श्वनाथ धरणेंद्र-पद्मावती-सेवित अतुल-बलवीय/- पराक्रम
ममात्मविद्यां रक्ष रक्ष पर-विद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद स्फ्रां स्फ्री स्फूं स्फ्रौं स्फ्र:हूं फट्! स्वाहा। 2. ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ श्रीपार्श्वनाथ धरणेंद्र-पद्मावती-सेवित ममेप्सितं कार्यं कुरु कुरु स्वाहा।2।
3. ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ कलिकुण्ड-दण्ड-स्वामिन्नतुल-बलवीर्य-पराक्रम ममात्मविद्यां रक्ष रक्ष पर-विद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद स्फ्रां स्फ्रीं स्फूं स्फ्रौं स्फ्रः हूं फट् स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि॥ ।
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