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पकवान बनाये बहु घृत लाये खांड-पगाये मिष्ट करे। मन आनन्द धारें मंत्र उचारें क्षुधा-रोग तत्काल टरे।। कलिकुण्ड- सुयंत्र पढ़ कर मंत्र ध्यावत जे भविजन ज्ञानी । सब विपति विनाशै, सुख परकाशै, होवै मंगल सुखदानी ।। 5 । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुण्ड-द ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र- पद्मावती-सेविताय अतुल - बलवीर्यपराक्रममाय सर्वविघ्न-विनाशनाय हम्ल्क्र्यूं म्ल्क्र्यूं म्म्ल्त्र्यं म्ल्क्र्यूं म्ल्क्र्यूं इम्ल्क्र्यूं स्म्ल्क्र्यूं
ख्क्ल्क्र्यूं नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
रतनन की जोतं अति उद्योतं तन क्षय होतं ज्ञान बढ़े।
अति ही सुख पावे पाप नशावे जो मन लावे पाठ पढ़े।। कलिकुण्ड-सुयंत्रं पढ़ कर मंत्र ध्यावत जे भविजन ज्ञानी । सब विपति विनाशै, सुख परकाशै, होवै मंगल सुखदानी ॥6॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र- पद्मावती-सेविताय अतुल बलवीर्यपराक्रममाय सर्वविघ्न-विनाशकनाय हम्ल्क्र्यूं म्म्ल्क्र्यूं म्द्र्यूं ल्त्र्यूं इम्ल्क्र्यूं स्म्ल्क्र्यूं ख्म्क्र्यू दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
चंदन कर्पूरं अगर सुचू लौंगादिक दश-गंध मिला।
वर धूप बनाकर अगनि मांहि धर, दुष्ट कर्म तत्काल जल।।
कलिकुण्ड-सुयंत्रं पढ़ कर मंत्र ध्यावत जे भविजन ज्ञानी ।
सब विपति विनाशै, सुख परकाशै, होवै मंगल सुखदानी ॥ 7 ॥
ॐ श्रीं क्लीं ऐं अर्हं कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल-बलवीर्यपराक्रममाय सर्वविघ्न-विनाशनाय हम्ल्क्र्यूं म्ल्क्र्यूं म्म्ल्क्र्यूं म्यूं म्ल्त्र्यूं इम्ल्त्र्यूं स्म्ल्क्र्यूं म्यूं धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
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