________________
क्षीरोदधिनन्दन मलया चन्दन केशर और कपूर घसो। भर सुवरण कलशा मन अति हुलसा भय वा ताप का दुःख नशो।।
कलिकुण्ड-सुयंत्रं पढ़ कर मंत्रं ध्यावत जे भविजन ज्ञानी।
सब विपति विनाशै, सुख परकाशै, होवै मंगल सुखदानी।।2।। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल-बलवीर्यपराक्रममाय सर्वविघ्न-विनाशनाय हाल्व्यूं भल्वयूँ मल्वयूँ म्द्व्यूं धल्व्यू झझल्व्यूं स्म्ल्यूं
ख्म्ल्यूं चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
शशि-सम उजियारो तंदुल प्यारो अणि शुध इकसारो जुगलेवो। हो गंध मनोहर रतन-थार भर पुंज सु कर मद तज देवो।।
कलिकुण्ड-सुयंत्रं पढ़ कर मंत्रं ध्यावत जे भविजन ज्ञानी।
सब विपति विनाश, सुख परकाशै, होवै मंगल सुखदानी।। 3।। ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल-बलवीर्यपराक्रममाय सर्वविघ्न-विनाशनाय हाल्व्यूं भल्व्यूं मल्व्यूं म्न॒यूं धम्ल्यू झम्ल्यू स्म्ल्यूं खम्ल्यूं
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
बहु फूल सुवासं मधुकर-राशं करके आसं आवत हैं। सुरतरु के लावो पुण्य बढ़ावो काम-व्यथा नश जावत हैं।।
कलिकुण्ड-सुयंत्रं पढ़ कर मंत्रं ध्यावत जे भविजन ज्ञानी।
सब विपति विनाश, सुख परकाशै, होवै मंगल सुखदानी।। 4।। ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल-बलवीर्यपराक्रममाय सर्वविघ्न-विनाशनाय हाल्व्यूं मल्व्यूं मम्ल्यूं म्यूं धल्व्यू झम्ल्यू स्म्ल्ज्यूं
ख्म्ल्यूं पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
603