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श्रीपार्श्वनाथ जिन-पूजा (कलिकुण्ड) (अडिल्ल छन्द ) हूंकार अक्षरात्मक देव जो ध्यावते। देव-मनुष-पशु-कृत सो व्याधि नशवते।।
कांसी तांबे पत्र पे शुद्ध लिखावते। केशर चन्दन ता पर गंध रचावते।।
(दोहा)
ऐसे अनुपम यंत्र को, मन-वच-काय संभाराजे भवि पूजें प्रीति-धर, हों भवदधि से पार।।
यंत्र स्थापना (चाल जोगीरासा) है महिमा को थान शुद्ध वर-यंत्र कलिकुण्ड जानो। डाकिनी शाकिनी अगनि चोर भय नाशत सब दुख खानो।। नव-ग्रहों का सब दख नाशो रवि शनि आदि पिछानो।
तिनका मैं स्थापन करहं त्रिविधि योग मन लानो।। ऊँ ह्रीं श्रीं अहँ कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथ धरणेन्द्र-पद्मावती-सेवित अतुलबल-वीर्य-पराक्रम-युक्त
सर्वविघ्न-विनाशक! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ऊँ ह्रीं श्रीं अहँ कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथ धरणेन्द्र-पद्मावती-सेवित अतुलबल-वीर्य-पराक्रम-युक्त
सर्वविघ्न-विनाशक! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीं अहँ कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथ धरणेन्द्र-पद्मावती-सेवित अतुलबल-वीर्य-पराक्रम-युक्त
सर्वविघ्न-विनाशक! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
अथाष्टक (छंद त्रिभंगी) गंगा को नीरं अति ही शीरं गंध-गहीरं मेल सही। भरि कंचन-झारी आनंद धारी धार करो मन प्रीति लही।। कलिकुण्ड-सुयंत्रं पढ़ कर मंत्रं ध्यावत जे भविजन ज्ञानी।
सब विपति विनाशै, सुख परकाशै, होवै मंगल सुखदानी।।1।। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुल-बलवीर्यपराक्रममाय सर्वविघ्न-विनाशनाय हाल्व्यूं भम्ल्यूं मम्ल्यूं म्यूं म्ल्यूं झम्ल्यू स्म्ल्यूं खम्ल्यू
जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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