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श्रीपार्श्वनाथ जिन-पूजा (नेमगिरि)
स्थापना (दोहा) निराधार आधार हो, गगन अधर हो आप। अन्तरिक्ष पार्श्व प्रभु पूजत मिटते ताप।।
नेमगिरी तीरथ महा, कर लीनों है वास। आह्वानन कर पूजता, मिले मुक्ति साम्राज्य।। ॐ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्ड-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्ड-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्ड-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्।
(सन्निधिकरणम्)
मन निर्मल कर जल भर लाया, रत्नत्रय-युत भाव से।
जन्म-जरा-मृत्यु रोग नशावन हेतु चढ़ाऊँ चाव से।। अंतरिक्ष श्री पार्श्व जिनेश्वर निशदिन तुम्हें जो ध्याते है।। ऋद्धि सिद्धि समृद्धि करते, रोग-शोक नश जाते हैं।।1।। ऊँ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्ड-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
केशर कुंकुम गंध मनोहर, चरण चढ़ाऊँ आपको। ध्यान धरा है निशदिन तेरा, मेटो भव-भव तापको।। अंतरिक्ष श्री पार्श्व जिनेश्वर निशदिन तुम्हें जो ध्याते है।। ऋद्धि सिद्धि समृद्धि करते, रोग-शोक नश जाते हैं।। 2।। ऊँ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्ड-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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