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चंद्रकिरण-सम उज्ज्वल अक्षत, स्वच्छ भव कर लाया हूँ। अक्षय-पद के प्राप्त करन को, पार्श्व चरण में आया हूँ।। अंतरिक्ष श्री पार्श्व जिनेश्वर निशदिन तुम्हें जो ध्याते है।।
ऋद्धि सिद्धि समृद्धि करते, रोग-शोक नश जाते हैं।। 3॥ ऊँ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्ड-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
महा सुगंधित पुष्प मनोहर, भांति-भांति के लाया हूँ। काम-भाव विध्वंस हेतु मैं, पारस-चरण चढ़ाया हूँ।। अंतरिक्ष श्री पार्श्व जिनेश्वर निशदिन तुम्हें जो ध्याते है।।
ऋद्धि सिद्धि समृद्धि करते, रोग-शोक नश जाते हैं।। 4।। ऊँ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्ड-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
विविध भांति नैवेद्य सजाकर, चरण चढ़ाने लाया हूँ। क्षुधा-रोग परिहार करो बस, यही भावना लाया हूँ।। अंतरिक्ष श्री पार्श्व जिनेश्वर निशदिन तुम्हें जो ध्याते है।।
ऋद्धि सिद्धि समृद्धि करते, रोग-शोक नश जाते हैं।। 5।। ऊँ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्ड-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मोहाधंकार से व्याप्त जगत में निज को देख न पाया हूँ। निज आत्म-ज्ञान का बोध मिले, इस हेतु दीप ले आया हूँ।।
अंतरिक्ष श्री पार्श्व जिनेश्वर निशदिन तुम्हें जो ध्याते है।।
ऋद्धि सिद्धि समृद्धि करते, रोग-शोक नश जाते हैं।। 6॥ ऊँ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्ड-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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